मध्यप्रदेश में भी जल क्षेत्र में सुधार की गतिविधियाँ जारी है। प्रदेश के 50 शहरों में “छोटे तथा मझौले शहरों की अधोसंरचना विकास योजना” या UIDSSMT स्वीकृत की गई है। खण्डवा और शिवपुरी की इन परियोजनाओं को पब्लिक-प्रायवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत निजी कंपनियों क्रमश: ‘विश्वा इंफ्रास्ट्रक्चर्स एण्ड सर्विसेस प्रायवेट लिमिटेड’ एवं ‘दोशियन लिमिटेड’ को 25 वर्षों के लिए सौंप दिया गया है। खण्डवा मध्यप्रदेश का पहला शहर है जहॉं पानी के निजीकरण के खिलाफ स्थानीय समुदाय के साथ जिला अधिवक्ता संघ, पेंशनर एसोसिएशन, व्यापारी संघ, नागरिक संगठन, मीडिया, सामाजिक समूह, राजनैतिक कार्यकर्ता आदि खड़े हुए हैं।
5 अगस्त 2012 को खण्डवा में जल क्षेत्र में सुधार की नीतियों पर एक ‘नर्मदा जल संघर्ष समिति’ एवं ‘मंथन अध्ययन केन्द्र’ द्वारा एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें शहर में पानी के निजीकरण के खिलाफ संघर्षरत् ‘नर्मदा जल संघर्ष समिति’ के सदस्यों अलावा समुदाय के प्रतिनिधि शामिल हुए। कार्यशाला का उद्देश्य समुदाय में पानी के निजीकरण के प्रति समझ पैदा करना था ताकि समुदाय इसके खिलाफ व्यापक रणनीति बना सके।
खण्डवा के पत्रकार श्री जय नागड़ा ने खण्डवा के वर्तमान जलस्रोतों के बारे में सचित्र प्रतुस्तीकरण करते हुए सिद्ध किया कि शहर को न तो बाहर से पानी लाने की जरुरत है और न ही पानी के निजीकरण की । उन्होंने निजीकरण के बाद कंपनी द्वारा समाज के जल संसाधनों पर कब्जा करने को गलत बताते हुए इसे आगामी पीढ़ियों के लिए अपूरणीय क्षति बताया। निजी कंपनी के साथ हुए अनुबंध की No Parallel Competing Facility या कोई समानांतर प्रतियोगी सुविधा नहीं संबंधी शर्त का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम किस स्रोत से पानी लें यह कंपनी नहीं तय कर सकती है। कार्यशाला में राजनैतिक विचारक और ‘समाजवादी जनपरिषद’ के राष्ट्रीय महासचिव श्री सुनील भाई ने कहा कि सरकार निजीकरण के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का कंपनीकरण कर रही है। उन्होंने कहा कि पानी का धंधा बहुत फायदे का धंधा है। मुफ्त में मिलने वाले पानी को बोतल में बेच कर देश की जीडीपी बढ़ाई जा रही है। जलप्रदाय की व्यवस्था जानबूझकर खराब की जा रही है ताकि निजीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। प्रदेश में पानी के निजीकरण की प्रक्रिया को वैश्विक संदर्भ में समझने तथा इसी के अनुरुप संघर्ष की रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है।
मुंबई पानी‘ समूह के श्री सीताराम शेलार ने कहा कि बेहतर व्यवस्थापन के बहाने मुंबई के एक वार्ड में पानी के निजीकरण का प्रयास किया जा रहा था। पानी की बर्बादी के नाम सार्वजनिक नल खत्म करने और मितव्ययिता के नाम पर कनेक्शनों पर मीटर लगाने की दलील गई थी। कुल मिलाकर इस बात का पक्का प्रावधान किया जा रहा था कि गरीब को पीने का पानी न मिल पाए। यह लोगों के पानी के अधिकार पर हमला था और हमने वहॉं इसका कड़ा विरोध किया। सबसे हास्यास्पद बात तो यह थी कि 10 हजार करोड़ जमा पूँजी वाले मुंबई महापालिका को विश्व बैंक द्वारा मात्र 3 करोड़ का कर्ज दिया जा रहा था।
‘बैंक इंफरमेशन सेंटर’ के श्री जो अथियाली ने कहा कि विश्व बैंक न सिर्फ कर्ज देनी वाली संस्था है बल्कि वह ज्ञान की ठेकेदारी भी करती है। उसके ज्ञान का उद्देश्य जलप्रदाय समेत सभी सेवाओं में निजीकरण को बढ़ाना है। विश्व बैंक पर अमेरिका, जापान तथा यूरोप के देशों का कब्जा है। चूँकि भारत इसका बड़ा कर्जदार है इसलिए इसकी नीतियों के दुष्प्रभाव यहॉं बड़े पैमाने पर देखे जा रहे हैं।
‘एनवायरन्मेंट लॉ रिसर्च सोसायटी’ नई दिल्ली के डॉ. फिलिप कलेट ने निजीकरण के कानूनी पक्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में पानी मानवाधिकार तो है लेकिन निजीकरण पर स्पष्टता नहीं है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने पानी को मौलिक अधिकार माना है। भारत के संदर्भ में उन्होंने बताया कि कानून को बदलना मुश्किल है लेकिन नीति को नहीं। सरकार को अपनी नीति तय करने की स्वतंत्रता होती है। इस मामले में न्यायालय से भी बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती है। दिल्ली जल बोर्ड में पानी के निजीकरण के बारे न्यायालय से कोई मदद नहीं मिल पाई है। श्री सुजीत कूनन ने कहा कि दिल्ली में भी पानी के निजीकरण के माध्यम से सरकार ठेकेदार बन रही है और जनता को उपभोक्ता बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पिपरिया (होशंगाबाद) के श्री राजेन्द्र हरदेनिया ने राष्ट्रीय जल नीति 2012 पर विस्तृत टीका करते हुए इसे समुदाय को पानी के अधिकार से वंचित करने वाली बताया।
‘प्रयास’ (पुणे) के श्री प्रांजल दीक्षित ने महाराष्ट्र में यूआईडीएसएसमटी के अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि चंद्रपुर, नागपुर, सांगली, कोल्हापुर, लातूर, भिवण्डी, नई मुंबई, औरंगाबाद आदि में पानी के निजीकरण की प्रक्रिया जारी हैं तथा 70 से अधिक शहरों में इसकी तैयारी है। नागपुर के धरमपेठ झोन में प्रायोगिक निजीकरण के बाद गरीब बस्तियों में जलप्रदाय में कोई सुधार नहीं हुआ इसके बावजूद पूरे शहर में इसका विस्तार किया जा रहा है।। लातूर में निजीकरण की सारी प्रक्रिया मात्र 3 वर्ष में ध्वंस्त हो गई। लेकिन सरकारों का स्थानीय निकायों को निजीकरण के लिए बाध्य किया जाना बदस्तूर जारी है।
‘मंथन अध्ययन केन्द्र’ के श्री रेहमत ने बताया कि निजीकरण अनुबंधों से स्पष्ट हुआ है कि पानी के निजीकरण की नीति को आगे बढ़ाने में सलाहकारों और अधिकारियों की गठजोड़ बड़ी भूमिका निभा रही है। पानी की अधिक जरुरत दिखाने के लिए गलत आधारों और मानकों का इस्तेमाल किया जाता है। खण्डवा के उदाहरण से स्पष्ट है कि निजी कंपनी और महँगें सलाहकार का सक्षम होने का दावा झूठा साबित हुआ है। करोड़ो रुपये की फीस वसूलने वाले सलाहकार हजारों करोड़ टर्न-ओवर वाली कंपनी के प्रतिनिधियों को यह भी पता नहीं चला कि वे अनुबंध की गलत प्रति पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। इसी प्रकार खण्डवा में निजी कंपनी 2 वर्ष का निर्माण कार्य 3 वर्ष में भी पूरा नहीं कर पाई है।
‘जनपहल’ मध्यप्रदेश के श्री योगेश दीवान ने पानी के निजीकरण विरोधी अभियान को व्यापक कर प्रदेश स्तर पर तेज करने की आवश्यकता बताई। संघर्ष से खण्डवा में पानी का निजीकरण भी निरस्त किया जा सकता है। निजीकरण हर स्तर पर असफल हो रहा है और अब इसका भ्रम टूटना चाहिए। कई सारी जलप्रदाय योजनाऍं नर्मदा के पानी के आधार पर बनाई जा रही है, इसलिए अब यह परीक्षण करने की आवश्यकता है कि क्या नर्मदा में इतना पानी है कि सबकी प्यास बुझाई जा सके। श्री मनोजसिंह भदौरिया (शिवपुरी), सैयद मुबीन (होशंगाबाद) एवं गोपाल राठी (पिपरिया) ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
अंतिम रणनीति सत्र में तय किया गया कि UIDSSMT में शामिल प्रदेश के अन्य शहरों में संपर्क कर साझा लड़ाई के प्रयास किए जाए। इसके तहत एक सामूहिक प्रतिनिधिमण्डल द्वारा मुख्यमंत्री से मिल कर उनकी घोषणानुसार प्रदेश में पानी का निजीकरण रोकने तथा भोपाल में दिसंबर 2012 में एक प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम आयोजित करने पर सहमति बनी। खण्डवा शहर में भी अभियान तेज करने पर विचार किया गया।
इसके पूर्व नर्मदा जल संघर्ष समिति के अधिवक्ता श्री विकास जैन ने खण्डवा में जारी निजीकरण विरोधी अभियान की रपट प्रस्तुत की। कार्यशाला की भूमिका मंथन अध्ययन केन्द्र के श्री गौरव द्विवेदी ने रखी। उद्घाटन भाषण खण्डवा चेंबर्स ऑफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रकाशचंद बाहेती दिया तथा सहभागियों का आभार अधिवक्ता श्री देवेंद्रसिंह यादव ने माना। कार्यक्रम का संचालन श्री संजय तिवारी ने किया।