मंथन अध्ययन केन्द्र ने सांझा जन पहल (होशंगाबाद) के साथ मिलकर 1 मार्च 2015 को होशंगाबाद स्थित सूरजभान कोचिंग क्लासेस में जल संवाद का आयोजन किया। संवाद में होशंगाबाद की तत्कालीन और यूआईडीएसएसमटी के तहतत निर्मित नई जलप्रदाय व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया।
संवाद की भूमिका रखते हुए सांझा जन पहल के श्री सैयद मुबीन ने बताया कि होशंगाबाद की जलप्रदाय भूजल पर आधारित है। नगर में मुख्य रूप से बोरवेल से जलप्रदाय होता है। इसके अलावा हेण्ड पंप और कुएँ भी पर्याप्त संख्या में है। दिन में 2 बार जलप्रदाय होता है और शहर में जल संकट जैसी स्थिति नहीं है। इस कारण यहाँ किसी नई योजना की जरुरत फिलहाल नहीं थी। श्री योगेश दीवान ने बताया कि यूआईडीएसएसएमटी के तहत निर्मित नई जलप्रदाय योजना का नाम के लिए पिछले वर्ष अगस्त में उद्घाटन हो चुका है लेकिन इससे जलप्रदाय अभी तक सुचारू नहीं हो पाया है। उन्होंने नर्मदा नदी आधारित जलप्रदाय योजनाओं के संबंध में कहा कि एक अकेली नर्मदा नदी सारे प्रदेश की पूर्ति नहीं कर सकती है इसलिए अन्य स्रोतों के दोहन और उनके संरक्षण के प्रयास किए जाने चाहिए।
मंथन अध्ययन केन्द्र के रेहमत ने बताया कि नई योजना में नगर की 2040 की जनसंख्या 2,05,000 के लिए गर्मी के दिनों में भी निरंतर 135 लीटर/व्यक्ति/दिन के हिसाब से नर्मदा नदी से 28 एमएलडी शुद्ध जल प्रदाय किया जाना है। योजना की स्वीकृत लागत 16.15 करोड़ रुपए थी लेकिनएसएमसी इंफ्रास्ट्रक्चर्स प्रा॰ लि॰ (ठाणे) का टेण्डर 24.81 करोड़ रुपए को स्वीकार किया गया इसलिए योजना की बढ़ी हुई लागत 8.66 करोड़ रुपए के लिए राज्य शासन से विशेष अनुदान माँगा गया।
नई योजना से जलप्रदाय का खर्च कई गुना बढ़ेगा जिसकी वसूली नागरिकों से की जाएगी। वर्ष 2006-07 का सालाना जलप्रदाय खर्च 79.50 लाख रुपए था जिसमें से जलदरों से वसूली मात्र 22.75 लाख रुपए यानी कुल खर्च का 28.62% ही हो पाई। वर्ष 2012-13 में खर्च के मुकाबले वसूली मात्र 15.29% थी। यूआईडीएसएसएमटी की शर्तों के तहत जल और संपत्ति कर की दरें और वसूली दोनों बढ़ाई जानी हैं।
सबसे बड़ी चुनौती जलप्रदाय का दायरा बढ़ाने की है। नगर के बड़े हिस्से को नलों से पानी नहीं मिलने का कारण यह है कि नगर के 33 वार्डों में से केवल 18 वार्डों में ही व्यक्तिगत नल कनेक्शनों द्वारा जलापूर्ति की व्यवस्था है जबकि शेष 15 वार्डों में नल कनेक्शनों के अतिरिक्त कुआँ, ट्यूबवेल, हेण्डपंप आदि मिश्रित स्रोतों से जलापूर्ति की जा रही है। लेकिन नई जलप्रदाय योजना में वितरण लाईनों के विस्तार पर जोर नहीं दिया गया है। ऐसे में योजना का उद्देश्य सफल होना मुश्किल है।
प्रो. कश्मीरसिंह उप्पल (इटारसी) ने बताया कि जलप्रदाय योजनाओं के नाम पर नगरीय निकायों के स्तर पर एक गठजोड़ बन गया है जो पर्याप्त विचार के बगैर योजनाएँ बना रहा है। लेकिन इन योजनओं की कीमत शहरी गरीबों को चुकानी पड़ रही है।
संवाद में शामिल शरीफ राईन, साकेत दुबे, कैलाश सोनकिया आदि ने नई जलप्रदाया योजना के बारे में व्यापक जनजागरण हेतु पुनः एक संवाद आयोजित करने की आवश्यकता जताई।