जल नियामक आयोग के प्रभावों पर मंथन अध्ययन केन्द्र एवं प्रयास (पुणे) द्वारा 13 जून 2008 को एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम में प्रदेश भर के सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए है।
सबसे पहले स्वागत भाषण तथा उसके बाद सभी प्रतिभागियों का परिचय हुआ।
‘मंथन अध्ययन केन्द्र‘ के श्रीपाद धर्माधिकारी ने कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए कहा कि जलक्षेत्र में सुधार के नाम पर इस समय कई प्रक्रियाएँ जारी हैं। ‘सुधार’ कार्यक्रमों का मकसद जलक्षेत्र को बाजार में बदल दिया जाना है। इसके परिणामस्वरूप पानी की दरें बढ़ाई जाएगी, पूरी लागत वसूली की जाएगी और इस क्षेत्र पर सरकारी नियंत्रण कम से कम होकर यह क्षेत्र बाजार के अधीन हो जाएगा। इन सुधार कार्यक्रमों में नियामक तंत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगें। पानी सामाजिक संसाधन माना जाता रहा है। आज उसकी बुनियाद बदलकर इसे बाजार की वस्तु बनाया जा रहा है। इसलिए इसे राजनैतिक हस्तक्षेप से पृथक किया जा रहा है।